Monday, October 4, 2010

पवित्र कुरआन की चुनौती

तमाम  संस्कृतियों में मानवीय शक्ति , वचन और रचनात्मक छमताओं  की अभिवियक्ति के प्रमुख साधनों में साहित्य और शायरी ( काव्य रचना ) सर्वोपरी है . विश्व इतिहास में ऐसा भी ज़मान गुज़रा है जब समाज में साहित्य और काव्य को वही स्थान प्राप्त था जो आज विज्ञानं और तकनीक को प्राप्त है .
ग़ैर - मुस्लिम भाषा - वैज्ञानिको की सहमती है की अरबी साहित्य का श्रेष्ठ सर्वोत्तम नमूना पवित्र कुरआन है , यानि इस ज़मीं पर अरबी साहित्य का सर्वोत्कृष्ट  उदाहरण  कुरआन - ए- पाक ही है . मानवजाति को पवित्र कुरान की चुनौती है की इन क़ुरआनी आयातों  ( वाक्यों ) के सामान कुछ बना कर दिखाए उसकी चुनौती है .  
2:23 
 " और अगर इस मामले में संदेह हो कि यह किताब जो हमने  अपने  बन्दे पर उतारी है, यह हमारी है या नहीं तो इसकी तरह एक ही सूरत ( क़ुरआनी आयात ) बना लाओ , अपने   सभी  साथियों को बुला  लो , एक अल्लाह को छोड़ कर , शेष जिस - जिस  की  चाहो मदद ले लो ,अगर तुम सच्चे हो तो यह काम  कर दिखाओ , लेकिन अगर तुमने ऐसा नहीं किया और यक़ीनन कभी नहीं कर सकते , तो डरो  उस आग से जिसका इंधन बनेगे इन्सान और पत्थर जो तैयार कि गयी है सत्य  को न मानने वालो के लिए
( अल - कुरान : सुरह 2 , आयात 23 से 24 )
 पवित्र  कुरआन स्पष्ट शब्दों में  सम्पूर्ण मानवजाती  को  चुनौती दे रहा है कि वह ऐसी ही एक सुर: बना कर तो दिखाए जैसी कि कुरआन में कई स्थानों पर दर्ज है . सिर्फ एक ही ऐसी सूरत बनाने की  चुनौती जो अपने भाषा सौन्दर्य, मृदभाषिता ,अर्थ की  व्यापकता और चिन्तन की  गहराई में पवित्र कुरआन की  बराबरी कर सके , आज तक पूरी नहीं की  जा सकी .

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